कोई तो पता दो यारों,उनके शहर का।इश्क़ शायरी।महबूबा की याद।

  कोई तो पता दो यारों,उनके शहर का|इश्क़ शायरी।महबूबा की याद|    

कोई तो पता दो यारों,उनके शहर का|इश्क़ शायरी|महबूबा की याद| 
दोस्तों आपका स्वागत है,आज के topic में | आज मैं आपके लिए एक खूबसूरत सा ग़ज़ल लेकर आया हूँ | जिसका शीर्षक है |  कोई तो पता दो यारों,उनके शहर का | 

ग़ज़ल शुरू करने से पहले | हम इसकी स्टोरी समझ लेते है | एक लड़का को एक लड़की से पहली मुलाकात में मुहब्बत हो जाती है | उसके साथ इतना मशगूल हो जाता है | की उसका पता तक नहीं पूछ पाता है | 
कोई तो पता दो यारों,उनके शहर का। इश्क़ शायरी। महबूबा की याद।


अब अचानक एक दिन वह पागलों की तरह करने लगता है | और रो रो कर सारे लोगों से,फ़िज़ा से दरख़्त से पूछता है | अपने लैला का पता | 

कोई तो पता दो यारों,उनके शहर का | 

गुमनाम मुसाफिर हूँ मैं,उनके शहर का | 
कोई तो पता दो यारों,उनके शहर का || 

दर्द छुपाये घूमता हूँ हर वक़्त,उनकी यादों का |  
कोई तो पता दो यारों,उनके शहर का || 

दिन कटती नहीं है,और रात भी होती है उनकी यादों का | 
कोई तो पता दो यारों,उनके शहर का || 

भूल गया मंज़िल वो शायद,पता अपना मुसाफिर का |
कोई तो पता दो यारों,अपने शहर का || 

शायद दिल कहकर कुछ कहती थी,नाम अपने शहर का | 
कोई तो पता दो यारो,अपने शहर का || 

वो कहती थी आ जाओ अपना नहीं है,अब तक कोई अपने शहर का | 
कोई तो पता दो यारों,अपने शहर का || 

पता नहीं किस हालत में होगी वो,मासूम चेहरा था | 
कोई तो पता दो यारों,उनके शहर का || 

कहता था इतना नाम मत ले मेरा,कहीं भूल न जाना नाम मेरे शहर का | 
कोई तो पता दो यारों,उनके शहर का || 

गुमनाम मुसाफिर हूँ मैं,उनके शहर का | 
कोई तो पता दो यारों,उनके शहर का || 
कोई तो पता दो यारों उनके शहर का || 


  लेखक मनीष देव

हम आज भी उनके इंतज़ार करते है ऐ देव 
कब आएगी वो लौटकर | 

उसे कोई कहो कि वो लौट कर आ जाये ,
कहीं देर न हो जाये और ये धरकन कहीं हमसे जुड़ा न हो जाये | 

ऐ देव तू समझता है न कितनी मुहब्बत करता हूँ उनसे ,
 तू ही समझाओ अब कितनी आजमाइश लेगी वो हमसे | 



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